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17 MAY 2020

भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम 1857

भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम

                                                                                                                                                                                                 Dr. Hemant Pandya 

              1857 की क्रान्ति आधुनिक भारत,पाकिस्तान और बांग्लादेश की साझी विरासत है। दक्षिण एशिया के इन देशों के मध्य स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास और घटनाओ पर अनेक मत भिन्नताये इतिहास की पुस्तकों में दृष्टिगोचर होती हैं,परंतु 1857 की क्रान्ति और घटनाओ के विषय में तीनो देशों का इतिहास लेखन एकसा हैं I भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के राज्य विस्तार के साथ ही समय-समय पर विरोध के स्वर भी बुलंद होते रहे थे। परंतु इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण 1857 की क्रान्ति हैं I रमजान के पवित्र माह में 10 मई को मेरठ से प्रारंभ क्रान्ति की चिंगारियां पूरे उपमहाद्वीप में फैल गयी थी I

                     इस क्रांति के स्वरूप,प्रसार और कारणों के विषय में इतिहासकारों में मतभेद हैं I औपनिवेशिक और परतंत्रताकालीन अंग्रेजी इतिहास लेखन इसे अनियोजित और उत्तर भारत तक सीमित स्वार्थी सिपाहियों का विद्रोह घोषित करता हैं,जोकि सत्य नहीं हैं I वास्तव में यह भारत की आजादी का प्रथम संग्राम था जो कि एक सुनियोजित योजना का परिणाम था। क्रांति के दौरान इंग्लैंड की संसद में विपक्ष के नेता और कंजरवेटिव पार्टी के बेंजामिन इसे राष्ट्रीय संघर्ष बताया था I अंग्रेजी संसद को दिए भाषण में डिजरायली ने कहा था कि कंपनी की प्रशासनिक नीतियां,भू-राजस्व नीति,इसाई मिशनरियों के कार्य,भारतीय समाजों में हस्तक्षेप,परंपराओं का विरोध तथा शिक्षा,भाषा और व्यवसाय के विनाश ने इस क्रांति को पैदा किया था I

       डॉ.सत्यराय की पुस्तक  "भारत में राष्ट्रवाद"  के अनुसार भारतीय परिपेक्ष में राष्ट्रवाद की यूरोपीय परिभाषा लागू करना उचित नहीं हैं I 1857 की क्रान्ति  में सभी वर्ग के लोगों ने बिना मतभेद के आपसी वैमनस्य को भुलाकर अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने का सामूहिक प्रयास किया था,जो राष्ट्रीय क्रान्ति की श्रेणी में आता है I डॉ ताराचंद, डॉ.विश्वेश्वरप्रसाद और डॉ. एस.पी.चौधरी ने भी इसे स्वतंत्रता संग्राम माना है I क्रांति के प्रत्यक्षदृष्टा और ‘वंशभास्कर' के रचयिता कवि सूर्यमल मिश्रण ने भी इसे राष्ट्रीय क्रांति बताया था ।1857 की क्रांति के प्रमुख नेता और योजनाकार अजीमुल्लाह खान ने भारत के प्रथम राष्ट्रीय गीत की रचना की थी I यह गीत  क्रांतिकारियों के अखबार ‘पयामएं आजादी' में प्रकाशित हुआ था,इस गीत के बोल उसी राष्ट्रीय एकता और सामूहिकता के भाव को अभिव्यक्त करते हैं -

"हम हैं इसके मालिक हिंदुस्तान हमारा,

पाक वतन है,कौम का जन्नत से प्यारा।

आज शहीदों ने तुमको अहले वतन पुकारा,

तोड़ो गुलामी की जंजीरे बरसाओ अंगारा।

हिंदु मुसलमा सिक्ख हमारा भाई भाई प्यारा,

यह है आजादी का झंडा इसे सलाम हमारा"।

क्रांति के दौरान भी राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने का प्रयास निरंतर जारी रहे थे I आजमगढ़ घोषणा इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है I विभिन्न धर्मों में सामंजस्य और सहयोग का भाव पैदा करने और राष्ट्रीय एकता के लिए की गयी कई घोषणाओं के प्रमाण नवीन शोधों में प्राप्त हुए हैं I इस राष्ट्रीय संघर्ष के दौरान मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर को पूरे भारत का शहंशाह घोषित किया गया था I उन्होंने हिंदु भावनाओ का सम्मान करते हुये गोकुशी पर पाबंदी लगा दी थी I1857 की क्रांति में फैजाबाद क्षेत्र के महान क्रांतिकारी नेता मौलवी अहमदुल्लाह ने कहा था की सारे भारतीय अंग्रेज काफिरों के विरुद्ध खड़े हो जाओ और उन्हें भारत से बाहर खदेड़ दो I वास्तव में उस समय क्रांतिकारियों का एकमात्र लक्ष्य था भारत से फिरंगीओं को भगाना I क्रान्ति में हिंदू और मुस्लिम कंधे से कंधा मिलाकर हिस्सा लिया था  I

          औपनिवेशिक शासन ने 1857 की क्रांति की घटनाओं को कमतर करके राष्ट्रीय विघटन को पैदा करने के लिए और विदेशी सत्ता को महिमामंडित करने के लिए क्रांति के राष्ट्रवादी सबूतों को जानबुझकर नष्ट कर दिया गया । औपनिवेशिक इतिहासकारों ने क्रांतिकारियों में आपसी तालमेल,संगठन व सहयोग के सबूतों की उपेक्षा की थी I विश्व इतिहास में इस प्रकार के अनेक उदाहारण उपलब्ध हैं I जब विजेता औपनिवेशिक शक्ति ने पराजितो को बर्बर ,धार्मिक अल्पसंख्यक और पदलोलुप नेताओ का संघर्ष बताकर स्वयं को महिमामंडित किया I इसी क्रम में  भारत के इतिहास में भी औपनिवेशिक इतिहास लेखन की परम्परा ने 1857 की महान क्रांति को सिपाही विद्रोह की संज्ञा दी गयी I इस राष्ट्रीय संघर्ष को कुछ असंतुष्ट सैनिकों और नेताओं के संघर्ष के रूप में प्रस्तुत कर इसकी महत्ता को कम करने का प्रयास किया गया I इतिहास लेखन की नवीन परंपराओ, मौखिक इतिहास और क्षेत्रीय इतिहास  लेखन ने इस क्रान्ति के अनेक अनाम नायको और संघर्षो को इतिहास में दर्ज कराया हैं I क्रान्ति के स्वर्ण जयन्ती वर्ष पर वीर सावरकर ने ‘द फर्स्ट वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस 1857' नामक पुस्तक को प्रकाशित किया था I इस क्रान्ति के अज्ञात इतिहास को सामने लेन का यह प्रथम भारतीय प्रयास था जिसमे 1857 की क्रान्ति को आजादी की प्रथम लड़ाई घोषित किया I औपनिवेशिक अंग्रेजी सरकार ने इस पुस्तक के प्रकाशन से पूर्व ही इस पर रोक लगा दी थी Iकिसी तरह हालैंड से इस पुस्तक का प्रकाशन सम्भव हुआ  मूलतः मराठी और अंग्रेजी में लिखी इस पुस्तक की प्रतिया ‘स्काउट पेपर' और ‘पिकविक पेपर्स' के नाम से अंग्रेजों से छुपाकर भारत में लायी गयी थी I भारत सरकार के आधिकारिक इतिहासकार डॉ सुरेंद्रनाथ सेन के "EIGHTEEN FIFTY SEVEN" नामक पुस्तक में लिखा हैं की जो कुछ धर्म के लिए लड़ाई के रूप में शुरू हुआ वह स्वतंत्रता संग्राम के रूप में समाप्त हुआ

                      वास्तव में 1857 की क्रान्ति एक सुनियोजित योजना एवं सामूहिक संगठित विरोध का प्रथम भारतीय प्रयास था। इस क्रांति की योजना सतारा के रंगोबापूजी गुप्ते और अजीमुल्ला खान ने बनायी थी I क्रीमिया के युद्ध में अंग्रेजों की विफलता को देखकर इन्हें भारत में फिरंगी शासन से मुक्त करने का स्वप्न देखने और योजना बनाने की प्रेरणा मिली थी I अजीमुल्ला खान ने 1857 के लिए क्रांतिकारी साहित्य लिखा था उनके द्वारा रचित गीत क्रान्तिकारी भारत का राष्ट्र गीत था I उन्होंने नानासाहब को साथ में लेकर पूरे भारत में संघर्ष की रूपरेखा तैयार की थी और इसकी तिथि 30 मई तय की गयी थी I क्रांति के दौरान भी इन्होंने तुर्की और मिस्र से मदद का प्रयास किया था ।

                             अंग्रेजी सरकार की खुफिया रिपोर्टों के अनुसार 1857 के प्रारंभिक महीनों में ग्रामीण भारत में अपरिचित लोगों व साधुओं की संख्या बढ़ने की रिपोर्टे भरी पड़ी है I क्रांति की पूर्व रूपरेखा में ‘चपाती आंदोलन' का महत्वपूर्ण स्थान हैं I जिसमे एक गांव से दूसरे गांव चपाती भेजकर जागरण का अनोखा आंदोलन पूरे भारत में फैल रहा थाIचपाती आन्दोलन का उल्लेख अंग्रेज अधिकारियों के द्वारा भी किया गया,परन्तु रहस्यमयी चपाती उनके समझ से परे थी I चपाती पूरे राष्ट्र की सामान्य प्रतिक्रिया थी I धर्म,जाति, नस्ल आदि से परे यह चपाती आन्दोलन मानव भूख से संबंधित था I जिसे अंग्रेजो ने अपने ही देश में भारतीयों के लिए दूभर कर दिया था I राष्ट्रीय आंदोलन की इतिहास में इसी भांति राष्ट्रपिता गांधीजी ने भी नमक का प्रयोग करके नमक सत्याग्रह प्रारंभ किया। कई स्थानों पर रोटी के साथ कमल के पुष्प का प्रयोग भी किया गया था।

                  नवीन अनुसंधानों से ज्ञात होता हैं की क्रान्ति की लहर उत्तर भारत तक सीमित नहीं थी I दक्षिण भारत में महाराष्ट्र,उड़ीसा,तेलंगाना,कर्णाटक, आंध्रप्रदेश,गोवा,केरल और तमिलनाडु  आदि राज्यों में 1857की क्रान्ति व क्रान्तिकारी नायकों का इतिहास प्राप्त होता हैं I रंगो बापूजी गुप्ते ने बेलगांव,सतारा और कोल्हापुर में क्रांति का नेतृत्व किया थाI सोनाजी पंडित, गंगाराम ,मौलवी सैयद अलाउद्दीन ने हैदराबाद में क्रांति का नेतृत्व किया था। 1859 में प्रकाशित जार्ज टॉड की पुस्तक ‘THE HISTORY OF INDIAN REVOLT AND EXPEDITURE TO PERSIA,JAPAN AND CHAINA' के अनुसार  अनुशासनहीनता के कारण मद्रास रेजीमेंट की 1044 सिपाहियों को दंडित किया गया था I मद्रास में गुलाम गोस व सुल्तानबक्ष, अरुणागिरी कृष्ण (चिंगलपुट),मूलबागल स्वामी (कोयंबटूर) आदि तमिलनाडु के अन्य  प्रमुख क्रांति के नेता थे I कर्नाटक में छोटासिंह,भीमराव, मुड़र्गी  आदि क्रान्तिकारी नेताओं के नाम मिलते हैं I 1857 में केरल में क्रांति का नेतृत्व कोनजी सरकार,मुल्ला सनी, विजय कुदारत अतुल कुजी मामा ने किया था । इसी प्रकार असम में मनीराम दत्त और  उड़ीसा में सुरेंद्रशाही व उज्जवलशाही, गंजाम में राधाकृष्ण दंडसेन, गोवा में दीपू ने क्रांति में हिस्सा लिया था।

 1857 की क्रांति पूरे भारत में व्याप्त असंतोष का एक स्वाभाविक परिणाम थी जिसमे भारत से हमेशा के लिए कम्पनी के शासन को समाप्त कर दिया। इस क्रांति के अनाम शहीदों के बलिदान की शोर्य गाथाये क्षेत्रीय साहित्य का अमूल्य हिस्सा है I अनाम नायक और उनकी कथाये राष्ट्रीय संघर्ष के दौरान निरन्तर प्रेरणा स्त्रोत बनी रही I


 

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Dr. Hemant PandyaEducationist
INTERESTED IN SOCIAL,POLITICAL AND EDUCATIONAL MATTER

Comments

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    Dileep Singh RajpurohitREPLY

    बहुत अच्छा लेखन सर

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    Manoj kumar sharmaREPLY

    शानदार

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    GyanprakashREPLY

    Very nice

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    Nimesh shuklaREPLY

    Satya history ki aur badhte kadamo ko pranam

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    Naresh kumar yadavREPLY

    Good job sir

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