वर्तमान के आइने में महाराणा प्रताप
Dr. Hemant Pandya
वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था। महाराणा प्रताप और मुगल शासक अकबर के साथ उनका संघर्ष भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण भाग है । हल्दीघाटी का युद्ध महाराणा प्रताप के जीवन में जल विभाजक का कार्य करता हैं । हल्दीघाटी के युद्ध से पूर्व महाराणा प्रताप की एक कूटनीतिज्ञ की छवि सामने आती है।राज्यारोहण के वर्ष ही मुगल शासक अकबर ने अधीनता स्वीकार करवाने के लिए एक के बाद एक चार दूत क्रमशः जलाल खा,मानसिंह भगवानदास और टोडरमल को महाराणा प्रताप के पास भेजा था । महाराणा ने एक कूटनीतिज्ञ के रूप में उनका स्वागत किया, उनके लिए शाही भोज का भी आयोजन किया । परन्तु अपने स्वाधीनता के लक्ष्य से तनिक भी विचलित नहीं हुए इस समय का उपयोग शक्ति संचयन और सैनिक संगठन के लिए किया ।
वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के जीवन की सबसे कठिन परीक्षा हल्दीघाटी का युद्ध और उसके बाद का घटनाक्रम है। मेवाड़ की थर्मोपोली हल्दीघाटी महाराणा प्रताप की सैन्य कौशल, संगठन क्षमता और योग्यता की कर्मभूमि है। इतिहास के पन्नों में रक्त तलाई ,बादशाह बाग का युद्ध, गोगुंदा के युद्ध या खमनोर के युद्ध के नाम से प्रसिद्ध हल्दीघाटी का यह संघर्ष महाराणा प्रताप की सफलता और मुगलों की विफलता का यशोगान करता है । मेवाड़ की धरती पर पहली बार हाथियों की लड़ाई हुई ।इस युद्ध के प्रत्यक्षदृष्टा इतिहासकार बदायूनी के अनुसार जब वह प्रताप के प्रिय गज ‘रामप्रसाद' को पकड़ कर युद्ध क्षेत्र से मुग़ल शासक अकबर के सामने प्रस्तुत करने के लिए अजमेर ले जा रहा था उस समय रास्ते में कोई भी मुगलों की विजय से सहमत नहीं था स्थानीय लोगों के द्वारा मुगलों का तिरस्कार किया जा रहा था । युद्ध के बाद शाही सेना प्रताप का पीछा करने का प्रयास भी नहीं किया था । हल्दीघाटी की असफलता से नाराज होकर अकबर अपने सर्वश्रेष्ठ 19 सरदारों के साथ स्वयं उदयपुर आया था परंतु वह प्रताप को अधीन करने में असफल रहा । वस्तुतः महाराणा प्रताप ने इस संग्राम को मेवाड़ का जनसंघर्ष बना दिया था। मेवाड़ के प्रत्येक व्यक्ति में स्वतंत्रता का बीज बो दिया था । तभी तो आधुनिक वियतनाम अमेरिका से अपने संघर्ष की सफलता में महाराणा प्रताप को आदर्श प्रेरक स्वीकारता है। वर्तमान के साम्राज्यवादी शक्तियों का नवीन स्वरूप प्रत्यक्ष हो रहा हैं । वैश्वीकरण के नाम पर शक्तिशाली राष्ट्रों के द्वारा शक्ति के दुरपयोग और दबाव के कई उदाहरण दृष्टिगोचर होते हैं। ऐसे समय में प्रताप और उनके आदर्श अधिक प्रासंगिक हो जाते हैं ।
हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की सेनाओं के हरावल दस्ते का नेतृत्व हकीम खान सूर ने किया था । मेवाड़ के वीर भील योद्धाओं ने सरदार पूंजा के नेतृत्व में प्रताप का साथ दिया था। मेवाड़ चित्रकला की चावण्ड शैली के चित्रकार निसारदी (नासिरउद्दीन) महाराणा प्रताप के संरक्षण में था । महाराणा प्रताप सर्वधर्म सद्भाव और सामाजिक समरसत्ता और समानता के आदर्श में विश्वास करते थे।जिसकी वर्तमान में सर्वाधिक आवश्यकता हैं । वास्तव में राष्ट्र का निर्माण और प्रत्यक्ष चुनोतियो पर विजय ‘सब का साथ सब का विकास' से ही संभव हैं ।
हल्दीघाटी के बाद महाराणा प्रताप की जीवन का सर्वाधिक कठिन समय आया । मुग़ल शासक अकबर ने महराणा प्रताप को अधीन करने के लिए चार बार सेनाये मेवाड़ भेजी ।अकबर के सेनापति भगवानदास, शाहबाज खान, अब्दुल रहीम खानखाना और जगन्नाथ कछवाहा ने एक के बाद एक मेवाड़ पर आक्रमण किया । शाहबाज खान ने तीन बार मेवाड़ पर आक्रमण किया था। परंतु अकबर के सभी प्रयास असफल रहे थे। मध्यकालीन राजस्थान के राजाओं में जब मुगलों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित कर अधीनता स्वीकार करने की होड़ लगी हुई थी तब महाराणा प्रताप का स्वतंत्रता और स्वाभिमान का मार्ग चुनना वंदनीय और अनुकरणीय हैं ।
महाराणा प्रताप के अनुसार राज की संपत्ति और शक्ति शासक के व्यक्तिगत विलासिता और उपभोग के लिए नहीं हैं । शासन के कथनी और करनी में भेद नहीं होना चाहिए । महाराणा प्रताप ने सामान्य नागरिक की भांति जीवन व्यतीत किया और राजमहल की विलासिता से दूर रहे। ‘पाथल और पीथल' में कन्हेयालाल सेठिया ने प्रताप के जीवन के प्रसंगों यथा घास की रोटी खाने, वनों में भटकने,जमीन पर सोने आदि का चित्रण मिलता हैं । महाराणा ‘सादा जीवन और उच्च विचार' के मूर्त रूप थे जो कि आधुनिक युग में भी उतना ही प्रासंगिक है । आधुनिक काल में उचाधिकरियो और शासक वर्ग के द्वारा सत्ता के दुरपयोग की घटनाओ के मध्य प्रताप के आदर्श और अधिक आकर्षित करते हैं ।
महाराणा प्रताप महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के प्रति अत्यधिक संवेदनशील थे । 1582 में कुंवर अमरसिंह जब अचानक शेरपुर के मुगल शिविर पर आक्रमण कर सूबेदार अब्दुल रहीम खानखाना के परिवार को बंदी बना लेते हैं,तब प्रताप ने सूबेदार के खानखाना की स्त्रियों और बच्चों को ससम्मान एवं सुरक्षित वापस लौटाने का आदेश दिया था। यही नहीं महाराणा प्रताप ने युवराज अमरसिंह के इस कार्य की आलोचना की थी। मध्यकालीन युग में जब शत्रु सेना के परिवार को दास और संपत्ति माने जाने के दृष्टांत प्राप्त होते हैं उस समय इस तरह का आदर्श केवल केवल महाराणा प्रताप जैसे वीर शिरोमणि के जीवन में ही दृष्टिगोचर होता है । परवर्ती काल में वीर शिवाजी ने भी इसी का अनुसरण किया था जो कि भारतीय परंपरा अनुसार भी है ।आधुनिक काल में इतनी शक्ति और सामर्थ्य के बाद भी राज्य महिलाओं और बचपन को सुरक्षित करने में समर्थ नहीं हुआ है । यहां प्रताप वास्तव में एक प्रेरक और आदर्श के रूप में प्रस्तुत है।
महाराणा प्रताप अप्रतिम योद्धा और कुशल सेनापति के साथ एक महान निर्माता भी थे । यदि महाराणा का मुगलों के साथ संघर्ष के नहीं होता तो आज मेवाड़ के महान निर्माता , साहित्य प्रेमी और विद्वानों के संरक्षक के रूप में इतिहास में उनका स्थान होता I महाराणा प्रताप ने जीवन के अंतिम 12 वर्ष राजधानी चावण्ड में बीते थे । इस समय इतिहास महाराणा प्रताप को एक निर्माता, एक कुशल शासन संगठनकर्ता के रूप में प्राप्त करता हैं । प्रताप के समय मेवाड़ में व्यापार,वाणिज्य, कला, साहित्य, संगीत में उन्नति दृष्टिगोचर होती है कवि जीवधर के काव्य ‘अमरसार' के अनुसार प्रताप के शासनकाल में लोगों को आंतरिक सुरक्षा प्राप्त थी । बिना अपराध के किसी को कोई दंड नहीं दिया जा सकता था ।महाराणा प्रताप स्वयं एक महान आदर्शवादी थे और कभी निहत्थे पर वार नहीं करते थे । चावण्ड में हरिहर मंदिर, चामुंडा माता का मंदिर आदि का निर्माण प्रताप ने करवाया था । महाराणा प्रताप के दरबारी कवि चक्रपाणि मिश्र ने तीन संस्कृत ग्रंथ राज्याभिषेक पद्धति, मुहूर्तमाला एवं विश्ववल्लभ की रचना की थी । इसी प्रकार जैन कवि हेमरतन सूरी ने ‘गोरा बादल कथा' और ‘पद्मिनी चौपाई की रचना की थी । महान क्रान्तिकारी और ‘प्रताप चरित' के लेखक केसरीसिंह बारहठ के अनुसार प्रताप स्वयं एक कवि थे । केसरीसिंह बारहठ ने पृथ्वीराज राठोड को भेजे गए पद्यमय महाराणा प्रताप के सन्देश को ढूंढा ।
प्रताप का जीवन संघर्ष,विश्वास और राष्ट्रभक्ति का मूर्त रूप है । कवि दुरसा आढा ने विरुद्ध छतरी में लिखा है की है महाराणा तुम वास्तव में महान हो तुमने कभी राजकीय सेवा का आनंद नहीं लिया अपने घोड़े पर शाही दाग नहीं लगने दिया । प्रताप की मृत्यु के समाचार पर स्वयं अकबर की आंखों में आंसू आ गये थे । हे प्रताप यही तुम्हारी सफलता है।